Manzil Mile Unhein Yeh Chahat Thi Meri
वह नदियाँ नही आँसु थे मेरे, जिनपर वह कश्ती चलाते रहे, मंजिल मिले उन्हें यह चाहत थी मेरी, इसलिए हम आँसु बहाते रहे…
वह नदियाँ नही आँसु थे मेरे, जिनपर वह कश्ती चलाते रहे, मंजिल मिले उन्हें यह चाहत थी मेरी, इसलिए हम आँसु बहाते रहे…
पत्थर की है दुनिया जज़्बात नहीं समझती, दिल में है क्या वो बात नहीं समझती, तनहा तो चाँद भी है सितारों के बीच मगर, चाँद का दर्द कमबख्त रात नहीं समझती…
मिर्जा ग़ालिब… “उड़ने दे इन परिंदों को आजाद फिजाओ में… जो तेरे अपने होंगे वो लौट आएंगे” शायर इक़बाल का जवाब… “न रख उम्मीद-ए-वफ़ा किसी परिंदे से… जब पर निकल आते है, तब अपने भी आशियाना भूल जाते है”
ना हम होते ना तुम होते ना ही यह सिलसिले होते, ना हम मिलते ना गम मिलते ना ही यह फासले होते, काश उस खुदा ने ऐसा कुछ किया होता, ना दिल होते ना दिल रोते ना ही दिल से दिल जुदा होते…